Q.1 Which of these phrases means “Bewakoof Banana”?
Q.2 “Kanjak Puja“ or “Kanya Puja” is a ritual associated with which Hindu festival?
Q.3 With which part of a computer is the advertising slogan “Intel Inside” associated?
Q.4 “Mithila” and “Madhubani” are also names of which kind of folk art?
Q.5 Muammar Gaddafi was the ruler of which country from 1969 to 2011?
Q.6 Who is the author of the play “Andher Nagri”?
Q.7 After Sachin Tendulkar which Indian Batsmen has scored the most number of runs in Test Cricket?
Q.8 Which investigation agency was founded in 2009 and given special powers to probe terror crimes in India?
Q.9 According to Hindu muthology, Who among these was the daughter of an 'APSARA' and 'RISHI'?
Q.10 What was the only dowry, apart from a few yards of khadi, that Lal Bahadur Shastri accepted in his marriage?
नदी का पानी
एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ गांव से हो कर गुजर रहे थे बुद्ध जी को बहुत प्यास लग रही थी उन्होंने अपने एक शिष्य से गांव से पानी लेकर आने के लिए कहा। शिष्य गांव में पानी लाने के लिए चला गया पास में ही एक नदी थी और गांव के सभी लोग इस नदी से पानी भर रहे थे इसके इलावा गाँव वाले इस नदी में कपड़े धो रहे थे और नहा भी रहे थे। जिस कारण नदी का पानी बहुत गंदा दिख रहा था। जिस कारण वो शिष्य पानी लिए बिना ही वापिस लौट गया और उसने महात्मा बुद्ध को सारी बात बता दी।
परन्तु महात्मा को तो बहुत ज्यादा प्यास लग रही थी इस बार उन्होंने अपने दुसरे शिष्य को पानी लेकर आने के लिए कहा। वह वहीँ गांव गया और थोड़ी ही देर में साफ़ पानी लेकर वापिस लौट आया।
बुद्ध जी ने शिष्य से पूछा के तुम्हे यह साफ़ पानी कहां से मिला ?
शिष्य बोला – महाराज जब में गाँव की नदी के पास पहुंचा तो मैंने देखा के पानी बहुत गंदा है तो मैंने थोड़ी देर तक इंतज़ार किया और जब पानी में मौजूद धूल -मिट्टी नीचे जमने के बाद पानी साफ़ हुआ तो मैंने पानी भर लिया।
दोस्तों जीवन में सुख और दुख नदी के पानी के सामान ही हैं जब हम अपने जीवन में बुरे कर्म करते हैं तो हमारा जीवन दुखों से घिर जाता है और जब हम अच्छे कर्म करते हैं तो तो हमारा जीवन सुखों से भरपूर हो जाता है और दुख भी दूर जाने लगते हैं।
अच्छी सोच
एक शहर में एक हस्पताल था जिसके एक कमरे में दो बुजुर्ग भर्ती थे। उनमे से एक उठकर चल सकता था परन्तु दूसरा बिल्कुल भी उठ कर चल नहीं सकता था। जो बुजुर्ग उठकर चल सकता था उसके पास एक खिड़की थी यो बाहर की तरफ़ खुलती थी यो बुजुर्ग चल सकता था वो खिड़की के पास पास बैठकर दूसरा बुजुर्ग जो उठकर चल नहीं सकता था उसे बाहर के दुर्श्य का वर्णन करता रहता था। बाहर सड़क पर दोड़ती हुई गाडीयां , सड़क पर चलते हुए लोग। नजदीक ही पार्क में खेलते हुए बच्चे और बताता के कैसे युवा जोड़े कैसे हाथ में हाथ डालकर बैठे हैं। कैसे जवान लड़के कसरत कर रहे हैं।
दूसरा बुजुर्ग अपनी आंखें बंद कर अपने बिस्तर पर लेटा उन दृश्यों का आनंद लेता रहता। उन दोनों बुजुर्गओं की डॉक्टर और नर्सों से भी अच्छी जान पहचान हो गई थी। ऐसे ही दिन बीतते गए। एक दिन सुबह जब नर्स ने खिड़की वाले बुजुर्ग को दवा देने के लिए उठाना चाहा तो पता चला के वो तो नींद में ही चल बसा था।
इसके कुछ दिनों के बाद दुसरे बुजुर्ग ने इच्छा जाहिर की के उसे अब खिड़की वाले बिस्तर पर शिफ्ट कर दिया जाए। उस बुजुर्ग को खिड़की के पास वाले बिस्तर पर शिफ्ट कर दिया गया। उस बुजुर्ग ने जैसे ही खिड़की को खोला तो उसे बाहर दीवार दिखाई दी न वहां पर कोई सड़क थी और न ही कोई पार्क था यह देखकर उसे हैरानी हुई। उसने एक नर्स से पूछा तो नर्स ने बताया के यह खिड़की तो दीवार की तरफ़ ही खुलती है। परन्तु उसने बताया के वो दूसरा बुजुर्ग तो मुझे कोई और ही वर्णन किया करता था के बाहर एक सडक है पार्क है पार्क में बच्चे खेल रहे हैं इससे नर्स ने मुस्कराते हुए उतर दिया यह तो उनके जीवन का नजरिया था। वो बुजुर्ग तो जन्म से ही अंधा था। इसी सोच के कारण वो एक दो साल से कैंसर से जूझ रहे थे।
इस कहानी का मुख्य उदेश्य है के जीवन नजरिए का नाम है नजरिया केवल आंखों से दिखने वाली चीज़ नहीं होती यह एक अच्छी सोच होती है।