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Meet a visually impaired woman farmer Tarabai, an inspiration for many

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छह महीने की नन्हीं उम्र में ही तारा देवी ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी, जो उनके लिए उस समय किया गया किस्मत का एक सबसे बड़ा अन्याय था.दृष्टिहीनता के कारण किसी से उनकी शादी नहीं हुई, बढ़ती उम्र के साथ परिवार वाले भी उन्हें खुद पर बोझ समझने लगे. लेकिन किसी भी विकट परिस्थिति में तारा बाई डिगी नहीं, और आज अपने मजबूत हौसलों की वजह से ही वो क्षेत्र की एक सफल महिला किसान बन गई हैं.

आंखों की रोशनी न होने के बाद भी तारा बाई महज पेड़ों की पत्तियों को छूकर ही यह अंदाजा लगा लेती हैं कि ये पत्ती किस सब्जी की है.
पहले आर्थिक तंगी का सामना करने वाली तारा बाई आज खेती-किसानी के जरिए अपनी खुशहाल जिंदगी बिता रही हैं.

बाजार में बिकने जाती है तारा बाई की सब्जियां

सब्जियों को बेचकर तारा बाई हर महीने करीब 8 हजार रूपये कमा लेती है.

कृषि कॉलेज से मिली ट्रेनिंग

दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एनजीओ तरुण संस्कार ने एग्रीकल्चर कॉलेज में इन्हें खेती करने के लिए ट्रेनिंग दिला रखी है.

सब्जी के साथ फूलों की भी खेती

अब तो जॉली के साथ ही बुधुआ गांव में भी दिव्यांग सब्जी उगा रहे हैं. बुधुआ की ही जन्म से नेत्रहीन अनामिका अपने घर में सब्जी के साथ गेंदे के फूल की भी खेती कर ही हैं.

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